Jagannath Statue Story in Hindi | जगन्नाथ मूर्ति की रहस्यमयी कहानी – जानिए श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति कैसे बनी

Jagannath Statue Story in Hindi

पुरी, ओडिशा में स्थित Jagannath Temple को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां भगवान श्रीकृष्ण को ‘जगन्नाथ’ रूप में पूजा जाता है। लेकिन सबसे रहस्यमयी बात है – जगन्नाथ जी की मूर्ति का असामान्य रूप। यह मूर्ति पूर्ण नहीं है – इसके हाथ-पैर नहीं हैं, फिर भी इसकी भक्ति विश्वभर में होती है।

इस लेख में हम जानेंगे, श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति की पौराणिक कथा, इसके निर्माण का रहस्य, और इससे जुड़ी रोचक आध्यात्मिक मान्यताएं


Jagannath Statue Story – देवताओं की लीला

पुराणों के अनुसार, द्वारका लीला समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी से अपने धाम को प्रस्थान किया। उनके अवशेषों को पांडवों ने समुद्र में प्रवाहित कर दिया। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण का हृदय जल में नहीं डूबा और वह एक काष्ठ (लकड़ी) के टुकड़े में परिवर्तित हो गया।

ओडिशा के समुद्र तट पर यह लकड़ी का टुकड़ा बहकर आया, जिसे राजा इंद्रद्युम्न ने देखा। उन्हें स्वप्न में भगवान विष्णु ने आदेश दिया कि इसी लकड़ी से वह भगवान की मूर्ति बनवाएं।


भगवान विष्णु स्वयं बने मूर्तिकार?

राजा इंद्रद्युम्न ने मूर्ति बनाने के लिए एक मूर्तिकार की तलाश की, लेकिन कोई भी उस लकड़ी को छू नहीं पा रहा था। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण (कुछ कथाओं में स्वयं विश्वकर्मा जी) ने आकर कहा:

“मैं मूर्तियां बनाऊंगा, लेकिन एक शर्त है – जब तक कार्य पूरा न हो, कोई भी दरवाज़ा नहीं खोलेगा।”

राजा ने सहमति दी। लेकिन कई दिनों तक जब कोई आवाज़ नहीं आई, तो रानी घबराकर दरवाज़ा खोल बैठीं। अंदर देखा तो मूर्ति अधूरी थी – हाथ और पैर नहीं बने थे। वृद्ध मूर्तिकार भी अदृश्य हो गया।


अधूरी मूर्तियां भी पूर्ण हैं – यही है दिव्यता

राजा को बड़ा दुख हुआ लेकिन तभी एक आकाशवाणी हुई:

“हे इंद्रद्युम्न! यह मेरी ही इच्छा थी। मेरी यह अधूरी प्रतीत होने वाली मूर्ति ही पूर्ण रूप में मेरी दिव्यता को दर्शाती है।”

इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित हुईं। यह तीनों मूर्तियां अब पुरी जगन्नाथ मंदिर में पूजित हैं।


मूर्ति के स्वरूप का गूढ़ अर्थ

श्री जगन्नाथ की मूर्ति में न तो आंखों के ऊपर पलकें हैं, न ही हाथ-पैर। इसका भावार्थ है:

  • भगवान सबको निरंतर देखते हैं, इसलिए पलकें नहीं हैं।
  • उनका प्रेम सीमाहीन है, इसलिए सीमित अंग नहीं।
  • वे स्वयं को अपने भक्तों को समर्पित कर चुके हैं, इसलिए वे ‘पूर्णता में अधूरे’ हैं।

हर 12 साल में होती है मूर्ति बदलने की प्रक्रिया – नवकलेवर

पुरी में हर 12 से 19 वर्षों के बीच नवकलेवर नामक प्रक्रिया होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां विशेष ‘दर्शनीय दारु (पवित्र नीम लकड़ी)’ से फिर से बनाई जाती हैं। यह कार्य अत्यंत गुप्त रूप से होता है और इसमें धार्मिक विधियों का विशेष पालन किया जाता है।

FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति अधूरी क्यों है?
उत्तर: मूर्तिकार द्वारा दरवाजा खोलने से पहले कार्य अधूरा रह गया, लेकिन भगवान ने इसे अपनी इच्छा बताया। इससे भक्तों को यह सिखाया गया कि भावना पूर्ण है, न कि रूप

Q2: जगन्नाथ जी की मूर्ति किस लकड़ी से बनी होती है?
उत्तर: यह ‘दर्शनिया दारु’ नामक एक विशेष नीम के वृक्ष से बनाई जाती है, जो कई शुभ लक्षणों के आधार पर चुनी जाती है।

Q3: मूर्ति कितने वर्षों में बदली जाती है?
उत्तर: हर 12 से 19 वर्षों के बीच ‘नवकलेवर’ प्रक्रिया के तहत मूर्तियां बदली जाती हैं।

Q4: क्या यह मूर्ति विश्वकर्मा जी ने बनाई थी?
उत्तर: कुछ शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु के रूप में स्वयं विश्वकर्मा जी ने मूर्ति का निर्माण किया था।

निष्कर्ष

श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। उनका अधूरा रूप भक्तों को यह सिखाता है कि भगवान की सच्ची पूजा मन और आत्मा से होती है, रूप से नहीं। यही कारण है कि आज भी पुरी में हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं, और रथ यात्रा में उनका प्रेम अभूतपूर्व होता है।

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